मौलाना आज़ाद का पूरा नाम अबुल कलाम मोहियुद्दीन अहमद था, जिनका बचपन बड़े भाई यासीन, तीन बड़ी बहनों ज़ैनब, फ़ातिमा और हनीफा के साथ कलकत्ता (कोलकाता) में गुज़रा। महज 12 साल की उम्र में उन्होंने हस्तलिखित पत्रिका ‘ नैरंग-ए-आलम ’ निकाली जिसे अदबी दुनिया ने खूब सराहा। हिंदुस्तान से अंग्रेजों को भगाने के लिए वे मशहूर क्रांतिकारी श्री अरबिंदो घोष के संगठन के सक्रिय सदस्य बनकर, उनके प्रिय पात्र बन गए। उन्होंने एक के बाद एक, दो पत्रिकाओं ‘अल-हिलाल’ औऱ ‘अल बलाह’ का प्रकाशन किया जिनकी लोकप्रियता से डरकर अंग्रेजी हुकूमत ने दोनों पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद कराकर, उन्हें कलकत्ता से तड़ी पार कर रांची में नज़रबंद कर दिया। चार साल बाद सन् 1920 में नजरबंदी से रिहा होकर वह दिल्ली में पहली बार महात्मा गांधी से मिले और उनके सबसे करीबी सहयोगी बन गए।
उनकी प्रतिभा और ओज से प्रभावित जवाहरलाल नेहरु उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे। पैंतीस साल की उम्र में आज़ाद कांग्रेस के सबसे कम उम्र वाले अध्यक्ष चुने गए। गांधी जी की लंबी जेल-यात्रा के दौरान आज़ाद ने दो दलों में बंट चुकी कांग्रेस को फिर से एक करके अंग्रेजों के तोड़ू नीति को नाकाम कर दिया। केंद्रीय शिक्षामंत्री के रुप में उन्होंने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में क्रांति पैदा करके उसे पश्चिमी देशों की पंक्ति में ला बिठाया। हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले मौलाना आज़ाद जैसे सपूत के जीवन की दिलचस्प कहानी को रुपहले पर्दे पर देखिए।
फिल्म के निर्माता डॉ. राजेंद्र संजय ने कहा, ‘इस फिचर फिल्म का निर्माण मैंने मौलाना आज़ाद की जीवनी से प्रभावित होकर किया। मौलाना आज़ाद एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके जीवन में काफी भावनात्मक उतार-चढ़ाव थे और स्वतंत्रता संग्राम में भी उनके कार्यों की गाथा अनूठी है। मौलाना आज़ाद पर बनने वाली भारत की यह पहली फिचर फिल्म है। इसके किरदारों का फिल्म के निर्माण के दौरान महत्वपूर्ण सहयोग रहा।
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