अपराधियों और गैंगस्टर के नाम पर सिर्फ साल भर में 1800 से ज्यादा एनकाउंटर कर 50 लोगों को मार गिराने वाली यूपी पुलिस की बंदूकों ने अब अचानक अपना निशाना बदल लिया है. बंदूकों का मुंह अब कुत्तों की तरफ घूम गया है. दरअसल, उत्त्तर प्रदेश के सीतापुर इलाके से खबर आ रही थी कि वहां कुछ कुत्ते आदमखोर हो गए हैं और वो इलाके के बच्चों को अपना निशाना बना रहे हैं. छह महीने में 12 बच्चों की मौत हो चुकी थी. बस इसी के बाद यूपी पुलिस ठीक उसी तरह घेर-घेर कर कुत्तों का एनकाउंटर कर रही है, जैसे अपराधियों के नाम पर इंसानों का कर रही है. हालांकि ये अब भी साफ नहीं हो पा रहा है कि बच्चों का शिकार करने वाले कुत्ते ही हैं या फिर कोई और?
यूपी पुलिस, एक साल, 1800 एनकाउंटर
गजब गोलियां उगल रही हैं यूपी में बंदूकें. ना एफआईआर. ना मुकदमा. ना गिरफ्तारी. ना दलील, ना वकील. ना बहस. सीधे सड़क पर फैसला. साल भर में 1800 एनकउंटर. 50 से ज्यादा ढेर. 300 से ज्यादा घायल. ये तो रही इंसानों के एनकाउंटर की बात. पर इसे क्या कहेंगे? क्योंकि यूपी पुलिस वही है. बंदूकें भी वही. गोलियां भी वही. बस निशाना बदल गया है. यहां पुलिस की गोलियों के निशाने पर अपराधी नहीं बल्कि वफादार जानवर कुत्ते हैं.
एनकाउंटर के लिए विशेष टीम
पुलिस की स्पेशल टीम बनाई गई. जगह जगह छापेमारी की जा रही है. ड्रोन कैमरे से चप्पे-चप्पे पर नजर रखी जा रही है. दूरबीन से हर हरकत की खबर रखी जा रही है. घंटों लंबी-लंबी मुठभेड़ चल रही हैं. ऐसे की जा रही है 12 बच्चों के कातिलों की तलाश.
ख़ैराबाद में कुत्तों का आतंक
पुलिस की स्पेशल टीम ने आखिरकार मुठभेड़ के बाद 12 बच्चों का कत्ल करने वाले गिरोह के एक सदस्य यानी कुत्ते को एनकाउंटर में मार गिराया. जी हां, यूपी में बदमाशों के एनकाउंटर के बाद अब कुत्तों के एनकाउंटर की जरूरत इसलिए आ पड़ी है क्योंकि पुलिस का मानना है कि ये कुत्ते आदमखोर हो गए हैं. बस इसीलिए यूपी पुलिस इन कुत्तों को 12 बच्चों का कातिल मानकर जिले में ऑपरेशन डॉग एनकाउंटर चला रही है.
6 माह में 12 बच्चे बने शिकार
इलजाम है कि नवंबर से लेकर अब तक करीब 6 महीनों में कुत्ते यहां 12 मासूम बच्चों को अपना शिकार बना चुके हैं. जिनमें से 6 बच्चों को तो सिर्फ मई के शुरूआती हफ्ते में ही जान गंवानी पड़ी.
नवंबर में हिमांशी और सोनम कुत्तों का शिकार बने.
जनवरी में कुत्तों ने मुबीन को अपना शिकार बनाया.
फरवरी में मासूम शगुन कुत्तों के हमलों में मारा गया.
मार्च में अरबाज और सानिया पर जानलेवा हमला हुआ.
और मई में अब तक शावनी, खालिद, कोमल, गीता, वीरेंद्र और कासिम को कुत्तों ने अपना शिकार बनाया. बेहद अजीब सी हैं ये घटनाएं. गली के कुत्तों का अचानक आदमखोर हो जाना हैरान करने वाला है. बस इसीलिए जितनी मुंह उतनी बातें हो रही हैं.
अधिकारियों के बयानों में विरोधाभास
सीतापुर के एसपी का कहना है कि कुत्तों को गोश्त खाने को नहीं मिल रहा है इसलिए वो इंसानों को काट रहे हैं.पर सवाल ये है कि बूचड़खाने तो पूरे यूपी में बंद हैं. तो गुस्से में सिर्फ सीतापुर के ही कुत्ते क्यों? और माना कि इन कुत्तों में खाना ना मिल पाने का गुस्सा है. तो फिर ये बच्चों के गर्दन पर सिर्फ हमला कर भाग क्यों जाते हैं? पशु कल्याण अधिकारी सौरभ गुप्ता का कहना है कि अगर वो कुत्ते आदमखोर हो गए हैं तो, उन कुत्तों ने केवल काटा क्यों, खाया क्यों नहीं?
जंगली आदमखोर शिकारी कुत्ते!
ऐसा नहीं है कि गली के कुत्ते आदमखोर नहीं हो सकते. लेकिन ऐसा तभी होता है जब वो दिमागी संतुलन खो बैठें. पर एक साथ झुंड का झुंड पागल हो जाए ये भी तो मुमकिन नहीं है. तो सवाल ये है कि कहीं ऐसा तो नहीं जिन्हें गांव वाले कुत्ता समझ रहे हैं वो कोई और है? क्योंकि हमलावर कुत्ते ही हैं इस बारे में कोई सही-सही नहीं कह रहा. एक चश्मदीद महिला का कहना है कि कुत्ते की तरह थे मगर अजीब थे. कुछ गांव वालों का कहना है कि जो कुत्ते बच्चों पर हमला कर रहे हैं. वो उनकी गली के कुत्ते नहीं बल्कि खेतों और बागों में छुपकर रहने वाले बाहरी शिकारी कुत्ते हैं. जिनकी भागने की रफ्तार भी ज्यादा है और वे बहुत खूंखार हैं.
बकरियां और गाय भी बनीं शिकार
सीतापुर के खैराबाद के 10 किमी के दायरे में जितने भी गांव हैं, वहां आतंक मचा हआ है. गांव वालों के मुताबिक सिर्फ बच्चों को ही नहीं बल्कि गाय और बकरियों को भी शिकार बनाया जा रहा है. सैकड़ों की तादाद में बकरियों और दर्जनों की तादाद में गाय पर इन कुत्तों ने जानलेवा हमला किया है. एक अधिकारी का कहना है कि हमलावर कुत्ते नहीं भेडिये हो सकते हैं.
हमलावर कुत्ते हैं या कोई और?
दहशत का आलम ये है कि बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया है. किसानों ने खेतों में जाना बंद कर दिया है. और जो जा भी रहे हैं, वो मचान के ऊपर चढ़े बैठे हैं. पर सवाल ये है कि क्या हमलावर सचमुच में कुत्ते ही हैं? या फिर कोई और? इस आतंक की तह तक पहुंचना जरूरी है.
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