Monday 8 August 2022

देवास में मुस्लिम पंचायत द्वारा मस्जिद के सामने ढोल-ताशे बजवाना इस्लाम व शरीअत के खिलाफ | Kosar Express

 

मस्जिद के सामने बजते हुए ढोल

दूसरा समाज बजाए तो विवाद पर उतारु क्यों

देवास। शहर के इस्लामिक आयोजन और त्योहारो को कुछ मौकापरस्त अवसरवादियों द्वारा अब सियासत के सरमाएदारों को मक्खन लगाने का जरिया बनाया जा रहा हैं। यह कहना है सच्चे और पक्के मुसलमानों का। इस्लाम के जिम्मेदार जानकार भी देवास में चापलूसी और इस्लाम के खिलाफ आयोजन देखकर दंग हैं। मोहसीनपुरा मस्जिद के बाहर मुहर्रम के मौके पर ढोल, ताशे, बैंड बजता देखकर आयोजकों पर लानत भेजने वाले कह रहे थे कि कोई और अगर ऐसा करे तो खूनखराबा तक हो सकता है लेकिन ये नाम और दिखावे के मुसलमान ग़म के शहादत के महिने की इज्जत करना ही भूल गये। खुदा के घर इबादतगाह मस्जिद के सामने ही ढोल बजवा रहे हैं। देवास में मुसलमानों की रहनुमाई, मार्गदर्शन के लिए दो काजी और उनके सहयोगी जूनियर मौजूद हैं लेकिन मौजूदा राजनीति के सामने वह भी हाथ बांधे नजर आते हैं। 


जानकारों का कहना है कि इस्लामिक परचम जुलूस में एक अपने स्वागत करवाते ही नहीं थक रहा था तो एक गाड़ी पर इस्लाम जिंदाबाद, हुसैन या हुसैन या हुसैन के नारे ना लगाते हुए किसी व्यक्ति विशेष जिंदाबाद के नारे लग रहे थे। शासन, प्रशासन और सत्ताधारियों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं। देवास में मुस्लिम आयोजनों में राजनीतिक घुसपेठ देखकर अब यह चर्चा हो रही है कि शहर को सच्चा मुस्लिमा लीडर चाहिए। देवास में अनेक मुस्लिम संगठन और समितियों के मुखिया राजनीति से जुड़े कौम के रहनुमाओं की कठपुतली के रुप में काम कर रहे हैं। किसी मुस्लिम परिवार में सामान्य मौत पर क्या ढोल बजाया जा सकता है?, परिवार के फौजी या अन्य की शहादत पर जश्न मनाया जा सकता है? का जवाब है नहीं तो फिर मुहर्रम में हुड़दंग, नेताओं का सम्मान, स्वागत क्यों?। यही सवाल बार बार सामने आ रहा है। राजनीति को मजहब में मिलाने का क्या मतलब है?। अपना स्वार्थ सिद्ध कीजिए लेकिन इस्लाम और आका इमाम हुसैन की शहादत को मजाक बनाकर नहीं। मुहर्रम मे सिर्फ तकरीर यानी करबला में सच और झूठ की जंग का, सब्र और अल्लाह के शुक्र का बयान हो । शरबत और लंगर के सार्वजनिक आयोजन हों। देवास के काजियों को भी अपना फर्ज ईमानदारी से निभाकर सही रहनुमाई करना चाहिए।




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