Friday 4 May 2018

MPCC का वास्तुदोष दूर करा रहे थे अरुण यादव, खुद ही दूर हो गए


भोपाल। 2003 में बेआबरू होकर सत्ता से खदेड़ दी गई कांग्रेस को वापस सत्ता में लाने के लिए तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव प्रदेश कांग्रेस कमेटी कार्यालय का वास्तुदोष दूर करवा रहे थे। उन्हे क्या पता था कि वास्तुदोष के साथ वो खुद भी दूर हो जाएंगे। राहुल गांधी ने उन्हे ठीक वैसे ही अचानक हटा दिया जैसे उन्होंने पीसीसी में वास्तुदोष हटाने का फैसला लिया था। कांग्रेस का मानना था कि कार्यालय में दोष के कारण ही कांग्रेस सत्ता से दूर है तो क्या मान लिया जाए कि अरुण यादव भी कांग्रेस का एक दोषी थे जो वास्तु के साथ दूर हो गया। 

भाजपा ने 2003 से पहले कराया था तंत्र मंत्र 
2003 में भारतीय जनता पार्टी भी ऐसा ही कर चुकी है। उस वक्त भाजपा प्रदेश में लगातार दो विधानसभा चुनाव (1993 और 1998 के) हार चुकी थी। 1998 में तो भाजपा को भी पूरा भरोसा था कि वो सत्ता में पहुंच चुके हैं लेकिन गुटबाजी के कारण हार गई। 2003 में पार्टी ने उमा भारती को चेहरा बनाया और अनिल माधव दवे रणनीतिकार बने। उस वक्त विशेषज्ञों ने बताया कि प्रदेश कार्यालय में वास्तुदोष है। तब पोर्च से सीधे अंदर घुसते ही बाईं तरफ टॉयलेट हुआ करता था। बाहर मुख्य दरवाजा भी उत्तर-पश्चिम में था। ऐसी ही कुछ और चीजें भी थीं जिन्हें दवे की निगरानी में दुरुस्त कराया गया। जैसे- टॉयलेट हटवाया गया। मुख्य दरवाजे को उत्तर-पूर्व में लाया गया। इमारत के भीतर भी कुछ जरूरी परिवर्तन कराए गए।

दिग्विजय सिंह की साढ़े साती से कैसे बचेगी कांग्रेस
अब सवाल यह है कि जब दोनों ही पार्टियों के आॅफिस का वास्तुदोष दूर हो गया और यदि इसी से चुनाव प्रभावित होते हैं तो 2018 के नतीजे क्या होंगे। अपनेराम तो यह कहते हैं कि कांग्रेस के आॅफिस में वास्तुदोष नहीं बल्कि कांग्रेस नेताओं में अहंकार दोष है। गुटबाजी का साया है। लालच का कालसर्प बैठा हुआ है। इसके अलावा दिग्विजय सिंह की साढ़े साती भी लगातार बनी हुई है। जनता दिग्विजय सिंह के नाम से डर जाती है और तमाम बुरा​इयां होने के बावजूद शिवराज के साथ दिखाई देने लगती है। ज्यादा विश्लेष की जरूरत नहीं। बस इतना काफी है कि दिग्विजय सिंह मप्र के मतदाताओं में खौफ का दूसरा नाम बन गया है। 

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