Wednesday 23 May 2018

एक मुसलमान ने जिस वजह से रोज़ा तोड़ा, वो जानने के बाद मुसलमानों से नफरत करने वाले पछताएंगे | Kosar Express

सांकेतिक तस्वीर

रमज़ान का महीना चल रहा है. नेकियों का महीना. लोग रोज़ा रखते हैं. सूरज के निकलने के बाद से लेकर उसके डूबने तक कुछ खाते-पीते नहीं. थूक भी गले से नहीं उतारते. इस खास महीने के दौरान एक बहुत ही कमाल का वाकया सामने आया है. वाकया ये कि देहरादून के एक आदमी ने अपना रोज़ा तोड़ा और सूरज से भी ज़्यादा चमकने लगा.

देहरादून में आरिफ खान नाम के शख्स ने एक अपरिचित आदमी की जान बचाने के लिए अपना रोज़ा तोड़ दिया. अजय बिजल्वाण नाम का एक 20 साल का लड़का आईसीयू में भर्ती था. अजय के लीवर में इन्फेक्शन हो गया था. इसके चलते उनके खून में मौजूद प्लेटलेट्स की संख्या लगातार कम होती जा रही थी. जब किसी इंसान के शरीर से कटने-फटने की वजह से खून बहने लगता है, तब प्लेटलेट्स खून को जमाकर बहने से, शरीर से बाहर निकलने से रोकते हैं. इसलिए उनकी संख्या बहुत मायने रखती है. डॉक्टरों ने कहा जल्द से जल्द खून का इंतज़ाम करना पड़ेगा वरना जान जाने का खतरा हो सकता है. खून चाहिए था ए पॉजिटिव (A+). बहुत ढ़ूंढ़ने के बाद भी उस ब्लड ग्रुप का खून कहीं नहीं मिल रहा था. प्लेटलेट्स को माइक्रोलीटर में मापा जाता है. एक स्वस्थ आदमी के शरीर में प्रति माइक्रोलीटर डेढ़ से साढ़े चार लाख प्लेटलेट्स होते हैं. शनिवार तक अजय के शरीर में उन प्लेटलेट्स की संख्या पांच हज़ार से भी कम हो गई थी.

अब घरवाले परेशान होने लगे थे. तभी उन्हें किसी ने सलाह दी कि उन्हें सोशल मीडिया पर लोगों से मदद मांगनी चाहिए. अजय के पापा ने फौरन उनकी बात मानी और अपनी समस्या सोशल मीडिया पर शेयर कर लोगों से मदद की गुहार लगाई. उनकी ये पोस्ट नेशनल असोसिएशन फॉर पेरेंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स के अध्यक्ष आरिफ खान को व्हाट्सएप पर मिली. आरिफ इस दौरान रोज़े से थे. उन्होंने अजय के घरवालों द्वारा शेयर किए नंबर पर फोन किया और पूछा कि अगर डॉक्टरों को कोई दिक्कत न हो तो वो खून दे सकते हैं. डॉक्टरों का कहना था कि बिना खाए-पिए वो खून नहीं दे सकते. कुछ भी खाने-पीने का मतलब था कि आरिफ को अपना रोज़ा तोड़ना पड़ता. लेकिन आरिफ बिना इस बात की परवाह किए तत्काल प्रभाव से हॉस्पिटल पहुंचे और खाना खाकर अजय के लिए ब्लड डोनेट किया.
जब आरिफ से उनके इस कदम के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा,
”रमज़ान में जरूरतमंदों की मदद करने का बड़ा महत्व है. मेरा मानना है कि अगर हम भूखे रहकर रोज़ा रखते हैं और जरूरतमंद की मदद नहीं करते तो अल्लाह कभी खुश नहीं होंगे. मेरे लिए तो यह सौभाग्य की बात है कि मैं किसी के काम आ सका.”

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