Tuesday 10 April 2018

देश की राजनीति में चाय और पकौड़े के बाद अब गरमा-गरम छोले भटूरे

कभी गांधी के उपवास से ब्रितानी हुकूमत हिल जाती थी, जबकि राजघाट पर सोमवार को कांग्रेस का उपवास उपहास बन गया।

नई दिल्ली। ऐसे तो आमतौर पर रसोई या खान-पान का सियासत से कोई सीधा वास्ता नहीं है, लेकिन इधर कुछ सालों से कोई न कोई डिश या जायका मीडिया की सुर्खियां बटोरता रहा है। 2014 के आम चुनाव के आसपास मोदी की चाय सुर्खियों का सरताज बनी तो इधर कुछ महीने पहले गरमा-गरम पकौड़े चर्चा में आए।
पर ठंडे पड़ चुके पकौड़े की जगह अब गरमा-गरम छोले भटूरे लेते दिखाई दे रहे हैं। चर्चा इसलिए तेज है, क्योंकि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने इस जायकेदार डिश को बहुप्रचारित उपवास से ऐन पहले खा लिया और इसके बाद गांधी बाबा के समाधि स्थल राजघाट पहुंच गए।
यह अलग है कि कभी गांधी के उपवास से ब्रितानी हुकूमत हिल जाती थी, जबकि राजघाट पर सोमवार को कांग्रेस का उपवास उपहास बन गया। विडंबना यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सियासी उपवास की हवा किसी और ने नहीं, बल्कि पार्टी की दिल्ली प्रदेश इकाई ने ही निकाल दी। चूंकि दिल्ली से निकला संदेश देश-दुनिया तक जाता है, इसलिए भारत बंद की तरह चैना राम के छोले-भटूरे की चर्चा भी अचानक देशव्यापी हो गई है। हालांकि, लालकृष्ण आडवाणी, शीला दीक्षित, हर्षवर्धन जैसे जाने-माने राजनेता भी इस छोले भटूरे के मुरीद हैं, लेकिन माकन और लवली का नाश्ता कुछ अलग हटकर है। सोमवार को पूरा दिन सोशल मीडिया पर माकन-लवली के छोले भटूरे ट्रेंड करते रहे।

दिल्ली कांग्रेस के इन नेताओं ने चैना राम की डिश का बेशक आनंद लिया हो, लेकिन इसने पार्टी और राहुल का जायका बुरी तरह बिगाड़ दिया। उधर, भाजपा इस जायके का अलग ही मजा लूट रही है।
दरअसल, सियासत के मौजूदा दौर में किसी मुद्दे को हवा उसके समाधान की मंशा से कम, बल्कि उसके जरिये राजनीतिक लाभ उठाने के मकसद से ज्यादा दी जाती है। इन दिनों अचानक से गरमा रहा दलितों का मुद्दा भी अपवाद नहीं है।
आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बड़े मसले तलाशे जारहे हैं। इस क्रम में फिलवक्त दलितों का मुद्दा सबसे ऊपर आ गया है। असहिष्णुता, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, नोटबंदी, जीएसटी जैसे मसले पाश्र्व में चले गए हैं और दलितों का दमन तेज होता दिखाई देने लगा है।
चूंकि मकसद राजनीतिक है, लिहाजा उपक्रम भी सियासी हो चला है। वरना कोई कारण नहीं कि दलित उत्पीड़न जैसे गंभीर मसले के लिए सवेरे के नाश्ते तक का मोह न छोड़ पाए। छोले-भटूरे खाना कहीं से गलत नहीं, लेकिन दिल्ली की यह बेहद लोकप्रिय डिश अभी इसलिए बेस्वाद हो गई है, क्योंकि इसे सियासत की कढ़ाई में तला-छाना गया। कई बार कुछ शब्द किसी नेता, दल या संस्था के लिए अप्रिय या मजाकिया से बन जाते हैं।
फिलहाल कांग्रेस के लिए छोले-भटूरे को भी इस जमात में शामिल किया जा सकता है। शायद यही कारण है कि भाजपा प्रवक्ता संबित पात्र सोमवार को पूरे दिन टीवी पर कांग्रेस को चिढ़ाने के अंदाज में बार-बार छोले-भटूरे का जिक्र करते रहे।
By JAGRAN

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