Saturday 28 April 2018

फेसबुक अब राजनीति का अड्डा नहीं बनेगी: विशेषज्ञ तैनात, होगी जांच


नई दिल्ली। फेसबुक पर मतदाताओं को प्रभावित करने का गंभीर आरोप लग चुका है। फेसबुक के मालिक मार्क जकरबर्ग की करीब पांच घंटे तक अमेरिकी कांग्रेस में सुनवाई हुई थी। इससे मिली सीख को अपनाते हुए फेसबुक ने कदम कुछ उठाए हैं। तय किया गया है कि फेसबुक अब राजनीति का अड्डा नहीं बनेगी। वो सोशल मीडिया के दायरे में ही रहेगी। बता दें कि भारत में इस साल कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधान सभा चुनाव होने हैं जबकि अगले वर्ष लोक सभा चुनाव होंगे। चुनावों को प्रभावित करने के आरोपों के मद्देनजर फेसबुक को केंद्र सरकार की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। फेसबुक ने स्पष्ट किया है कि राजनीति और राजनीतिक दलों के बारे में विचारों की बारीकी से जांच की जाएगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई समाचार या पोस्ट चुनावों को प्रभावित न करे। 

                                   प्रत्येक राजनीतिक दल द्वारा विज्ञापन पर किए गए खर्च पर भी नजर रखी जाएगी ताकि सरकार या कोई एजेंसी यह आरोप न लगा सके कि कंपनी ने विज्ञापनों से अपना राजस्व बढ़ाने के लिए चुनावों को प्रभावित किया है। यह कंपनी की विज्ञापन पारदर्शिता पहल का हिस्सा है। कंपनी के एक करीबी सूत्र ने कहा कि संभव है कि सभी विज्ञापन राजनीतिक दल द्वारा नहीं दिए जाएंगे क्योंकि कुछ उनके समर्थकों द्वारा भी पोस्ट किए जाएंगे। लेकिन इससे फेसबुक को यह पता लग जाएगा कि हर राजनीतिक दल ने उसके प्लेटफॉर्म पर प्रचार के लिए कितना पैसा खर्च किया। कंपनी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि कोई भी मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए उसके प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल न करे। 

हर राजनीतिक पोस्ट और विज्ञापन की जांच होगी
कंपनी ने भारत में कन्नड़, तमिल, बांग्ला, हिंदी, गुजराती और कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के विशेषज्ञों को भी नियुक्त किया है जो इन भाषाओं में पोस्ट होने वाली सामग्री पर नजर रखेंगे। सूत्र ने कहा, ‘पहले लोग क्षेत्रीय भाषाओं में पोस्ट करके बच जाते थे लेकिन अब कंपनी क्षेत्रीय भाषाओं के जानकारों की सेवा ले रही है ताकि किसी तरह की आपत्तिजनक पोस्ट से बचा जा सके।‘ साथ ही फेसबुक पर पोस्ट किए गए राजनीतिक विज्ञापनों की भी जांच होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी राजनीतिक दल की छवि धूमिल न हो या फिर किसी जाति, समुदाय या नस्ल के लोगों को निशाना न बनाया जा सके।

चुनावी अफवाहों को डटकर रोकेंगे 
देश में अगले साल होने वाले आम चुनावों के मद्देनजर फेसबुक ने कहा कि कंपनी यह सुनिश्चित करने के लिए अपने स्तर पर और तीसरे पक्ष के साथ मिलकर काम कर रही है कि कोई भी गलत सूचना उसके प्लेटफॉर्म पर न आए। कंपनी की ग्लोबल प्रोडक्ट मैनेजमेंट की उपाध्यक्ष मोनिका बिकर्ट ने हाल में कहा, ‘हम इसे गंभीरता से लेते हैं। कंपनी चुनावों की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है। हम दुष्प्रचार और गलत प्रचार से निपट रहे हैं। यह हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। हम अपने टूल्स का वैश्वीकरण कर रहे हैं जो चुनाव के संदर्भ में बहुत अहम है। हम तीसरे पक्ष द्वारा तथ्यों की जांच पर निर्भर हैं और हमने भारत में भी ऐसी एक सेवा शुरू की है।‘

कर्नाटक में हो रहा है पहला प्रयोग 
कर्नाटक चुनावों के मद्देनजर फेसबुक तथ्यों की जांच के लिए प्रयोग के तौर पर एक तीसरे पक्ष के साथ काम कर रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल चुनावों को प्रभावित करने के लिए न हो। कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर कहा, ‘अपने प्लेटफॉर्म पर गलत खबरों के खिलाफ जंग के उद्देश्य से हमने एक स्वतंत्र डिजिटल पत्रकारिता पहल बूम के साथ हाथ मिलाया है। यह एक प्रायोगिक कार्यक्रम है जो सबसे पहले कर्नाटक में शुरू किया जाएगा।‘ अगर तथ्यों की जांच करने वाला पक्ष किसी पोस्ट को गलत करार देगा तो फेसबुक न्यूज फीड में उसे नीचे दिखाएगा जिससे इसके प्रसार में उल्लेखनीय कमी आएगी। इससे अफवाहों का फैलना बंद होगा और कम से कम लोग इसे देख पाएंगे।

फेसबुक ने मंगलवार को पहली बार उन दिशानिर्देशों को सार्वजनिक किया जिनके आधार पर उसके मॉडरेटर किसी पोस्ट या समाचार को हटाते हैं। इनमें कई तरह की आशंकाएं शामिल हैं जैसे हिंसा, स्पैम, उत्पीडन, खुद को नुकसान पहुंचाने, आतंकवाद, बौद्घिक संपदा की चोरी और नफरत फैलाने वाले भाषण।

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