सवालों के घेरे में विभाग, कटघरे में कानून
दागदार होता महकमा, सोचने पर मजबूर जनता
आखिर क्यों बेबस है यहां के अधिकारी
क्यों नहीं ले पा रहे है इस तरह के कांड पर कोई एक्शन
यह सब कुछ पिछले कई दिनों से चल रहा है। लेकिन जिला चिकित्सालय के जवाबदार प्रभारी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी तथा जिम्मेदार सिविल सर्जन अभी तक यह सवाल नही उठा पाए कि आखिर सरकारी लाकर मे लेबर रूम इंचार्ज ने कोन सा पैसा रखा था ? कहां से आया था ये रुपया ? क्यों लाया गया था ये पैसा ! कहीं ये रुपया रिस्वत का तो नहीं ? रिस्वत ली गई थी या रिस्वत दिये जाने के लिए लाकर मे रखा गया था रुपया ? कहीं नवजात शिशुऔ की खरीद-फरोख्त नहीं हो रही है एम जी हॉस्पिटल में? प्रसुति वार्ड में लगते रहे रिस्वतखोरी के आरोपों को सच करनेवाला पैसा तो नहीं था? इस तरह के उठते कई सवाल और जवाबदारो कि खामोशी स्वास्थ्य विभाग को बदनुमा दाग से दागी कर रही है? अब देखना यह बाकी है इस कांड पर डाले जा रहे पर्दों को उठाने की हिमाकत कोन कर पाता है। क्योंकि जिला अस्पताल के प्रभारी अधिकारियों द्वारा डंके कि चोट पर यह कहा जाता रहा है कि अगर यहां के हालात और भी बिगडे तब भी हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है क्योंकि हमने देवास से लेकर भोपाल तक सबके मुह मे रुपया इस तरह ठूंस रखा है कि वे ठीक से सांस तक नही ले पा रहे है तो हमारे खिलाफ कार्यवाही करना तो बहुत दूर कि बात है ?
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