क्यों उठी थी कांग्रेस में चेहरे की मांग
2003 में शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस को पूरी उम्मीद थी कि 2008 में वो वापसी करेगी परंतु ऐसा नहीं हुआ। 2013 में कांग्रेसी दिग्गजों ने शर्त के साथ कह दिया था कि जनता शिवराज सरकार से नाराज है और कांग्रेस हर हाल में सत्ता में वापस आएगी परंतु ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस के कई प्रत्याशी मात्र 2000 वोटों के अंतर से हार गए। दोनों चुनावों में प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं ने मंच से बार बार दिग्विजय सिंह शासन की याद दिलाई थी। साथ ही यह भी कहा था कि यदि कांग्रेस को वोट दिया तो दिग्विजय सिंह सरकार आ जाएगी। भाजपा और कांग्रेस दोनों के विशेषज्ञों का मानना है कि दिग्विजय सिंह के डर के कारण भाजपा को फायदा हुआ और कांग्रेस को नुक्सान। इसी के चलते 2018 के चुनाव से पहले कांग्रेस में लगभग हर स्तर से मांग उठी थी कि कांग्रेस का भी कोई चेहरा होना चाहिए ताकि जनता को पता चले कि यदि कांग्रेस को वोट दिया तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा।
अब क्या होगा
सूत्र कहते हैं कि राहुल गांधी खुद मप्र की कमान संभालेंगे। राहुल गांधी के पोस्टर्स में जिसका चेहरा नजर आएगा उसे ही सीएम कैंडिडेट मान लिया जाएगा। कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर चुनाव प्रबंधन का काम सौंप दिया जाएगा जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनकी योग्यता के अनुसार चुनाव अभियान समिति का चेयरमैन बना दिया जाएगा। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह अपने क्षेत्र की जिम्मेदारी संभालेंगे और सुरेश पचैरी से लेकर जीत पटवारी तक को विधानसभाओं की जिम्मेदारी बांट दी जाएगी। बस अब तक यह तय नहीं हो पाया है कि दिग्विजय सिंह का क्या करेंगे।
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