नर्मदा परिक्रमा पदयात्रा के दौरान पत्नी के साथ दिग्विजय सिंह
पीले धोती कुर्ते में तिलक लगाकर मां नर्मदा की आरती, फिर कन्याओं को भोज, उसके बाद बड़े मंच पर विराजे तमाम संतों को दक्षिणा देकर आशीर्वाद लेना और हर पल पत्नी का साथ. इसके बाद शंकराचार्य के मंच से प्रवचन. कुछ यूं कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने बिना रुके 6 महीने 11 दिन में नर्मदा की परिक्रमा का समापन किया.
सनातन धर्म का ऐसा नजारा जो सियासत में दिग्विजय सिंह की पिछली भूमिका के बिलकुल उलट था. दिग्विजय की छवि केंद्र की सियासत में आने के बाद प्रो-मुस्लिम की रही है. खास वक्त में उनके बयानों को भला कौन भूल सकता है. बाटला हाउस कांड और लादेन की मौत के वक्त दिग्विजय के बोल उनकी छवि खराब करते गए. फिर आतंकी हाफिज सईद को साहब कह बैठे. और तो और यूपी चुनावों में मुस्लिमों को आरक्षण की वकालत भी करने वाले वो ही थे.
बदले अंदाज में नई पारी
ऐसे में बदले सियासी समीकरण में राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी ने मानो नए सिरे से अपनी इनिंग प्लान की. खादी का चोला उतार पीले वस्त्र धारण कर लिए और निकल पड़े नर्मदा की कठिन पद यात्रा पर. यात्रा को धार्मिक करार दे 6 महीने कोई सियासी बयानबाजी नहीं करने का ऐलान भी कर दिया. शायद दिग्विजय को भी राहुल और कांग्रेस की तरह 2014 में बनी अपनी एंटी हिन्दू छवि का एहसास हो चला था.
इस यात्रा के दौरान संस्कारी हिंदू महिला की तरह उनकी पत्नी लगातार उनके साथ रहीं. रास्ते में मंदिरों के दर्शन करते, संत और मुनियों का आशीर्वाद लेते ये जोड़ी सनातन हिंदू परंपरा का आदर्शवादी तरीके से पालन करती रही.
इसके बाद जैसा दिग्विजय ने ऐलान किया था कि यात्रा पूरी करने के बाद वो कोई पकौड़े नहीं तलेंगे बल्कि, खुलकर राजनीति करेंगे. वो नजर भी आ गया. एक तरफ यात्रा का समापन हो रहा था तो दूसरी तरफ मंजर बता रहा था कि, यहां से दिग्विजय की भविष्य की सियासत का आरम्भ भी हो रहा है.
मंच से सियासत दूर
दिग्विजय के इस धार्मिक मंच पर साधु-संतों के बीच आहिस्ता-आहिस्ता मध्य प्रदेश कांग्रेस के तमाम दिग्गज आने लगे. कमलनाथ, प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद कांतिलाल भूरिया, राहुल की करीबी मीनाक्षी नटराजन, वरिष्ठ नेता सुरेश पचैरी, सांसद और कांग्रेस की लीगल सेल के मुखिया विवेक तनखा समेत राज्य के प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया भी मंच पर बैठे.
मंच धार्मिक था इसलिए सियासी बातें तो नहीं हुईं, लेकिन हर वक्ता की जुबान पर दिग्विजय की तारीफ के पुल थे. दिग्गज कमलनाथ ने तो ये तक कह दिया कि दिग्विजय मेरे भाई हैं, मैं उनको सलाम करता हूं. वो हमारी आन बान शान हैं. वहीं राजनीति में किस्मत आजमाने का ख्वाब संजोये अभिनेता आशुतोष राणा ने दिग्विजय को राजर्षि बता डाला.
राणा ने कहा कि दिग्विजय राजा तो हैं ही, लेकिन नर्मदा परिक्रमा करके वो ऋषि भी हो गए. इसलिए मैं उनको राजर्षि कहूंगा.
मंच पर सियासत में दिग्विजय अपना दबदबा दिखा रहे थे, तभी मध्य प्रदेश कांग्रेस की सियासत में क्या होने जा रहा है, उसकी भनक भी लग रही थी. आखिर मंच पर ज्योतिरादित्य सिंधिया और सत्यव्रत चतुर्वेदी मौजूद नहीं थे. कार्यक्रम के समापन के तुरंत बाद आजतक से खास बातचीत में दिग्विजय ने केंद्र और राज्य की सियासत के लिहाज से अपने इरादे जाहिर कर दिए.
गुटबाजी खत्म करेंगे दिग्विजय
दिग्विजय सिंह ने कहा कि वो मध्य प्रदेश के सीएम पद की दौड़ में कतई नहीं हैं, बल्कि आलाकमान कहेगा तो वो राज्य कांग्रेस की गुटबाजी, आपसी खींचतान और फसाद को खत्म कर सबको कांग्रेस की खातिर एकजुट करने को तैयार हैं यानी राज्य कांग्रेस का हाल वो खुद बयां कर देते हैं.
साफ है कि दिग्विजय अब मध्य प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में किंग नहीं किंगमेकर बनना चाहते हैं. 2003 में राज्य में पार्टी को हार के बाद सीएम रहे दिग्विजय ने अगले 10 साल चुनाव नहीं लड़ने और राज्य की सियासत में सीधा दखल नहीं करने का ऐलान किया था. जिसके बाद वो 2014 में जाकर राज्यसभा का चुनाव लड़कर सांसद बने. अब उनकी निगाहें फिर राज्य की राजनीति पर हैं, लेकिन चाणक्य या पितामह की भूमिका में.
राज्य के साथ ही दिग्विजय का केंद्र की सियासत का भी प्लान तैयार है. पार्टी के भीतर की सियासत में अपना दखल बढ़ाने की चाहत में वो फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में कांग्रेस के लड़कर जमानत नहीं बचा पाने के सवाल पर वो खुलकर कहते हैं कि ये फैसला उनकी समझ से परे था, जिसकी उन्हें जानकारी भी नहीं थी.
पार्टी में बड़े कद की चाह
केंद्र में दिग्विजय सिर्फ महासचिव रहकर महज एक राज्य का प्रभार संभालने की बजाय राष्ट्रीय राजनीति में अपना बड़ा कद चाहते हैं. इसीलिए वो कहते हैं कि 14 साल महासचिव रह लिया, अब कितना काम करूंगा. अगर जनार्दन द्विवेदी की तर्ज पर राहुल मुझे बदलते हैं तो मुझे कोई दिक्कत नहीं. लेकिन दिग्विजय यहीं नहीं रुकते. वो साथ ही जोड़ते हैं कि राहुल बदलाव के लिए कोई भी फैसला करें, वह उनके साथ हैं. पर राहुल को युवाओं और अनुभवी नेताओं के बीच सामंजस्य रखना होगा.
मध्य प्रदेश में नवंबर में चुनाव होने हैं, नर्मदा यात्रा के दौरान दिग्विजय राज्य की करीब 114 सीटों में जा चुके हैं. उनके करीबी बताते हैं कि, उनका अगला प्लान पूरे राज्य का दौरा करना है. शायद इसीलिए दिग्विजय कहते हैं कि चुनाव जीतना है तो राज्य के नेताओं को जनता के बीच जाना होगा और उनके मन की बात सुननी होगी.
दिग्विजय के करीबियों के मुताबिक, वो राज्य में किसी को सीएम का चेहरा बनाने के हक में नहीं हैं. आखिर इसी दांव से ही तो वो किंगमेकर बनना चाहते हैं. लेकिन सियासत के माहिर खिलाड़ी कांग्रेस की संस्कृति से बखूबी माहिर हैं. इसलिए कहते हैं कि राज्य की सियासत हो या केंद्र की या अपना सियासी भविष्य, वो सब सबसे पहले पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी से चर्चा करेंगे.
राहुल को मिले खुली छूट
केंद्र की सियासत के लिहाज से वो अमित शाह और पीएम मोदी पर तीखे हमले जारी रखते हैं, जिससे राष्ट्रीय राजनीति में कद बड़ा रहे. साथ ही भविष्य में केंद्र कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों के साथ आने की वकालत करते हैं, लेकिन ये कहते हुए कि जहां कांग्रेस कमजोर हो वहीं गठजोड़ हो. वैसे दिग्विजय जानते हैं कि, अब पार्टी में बॉस सोनिया नहीं राहुल हैं. इसलिए वो सोनिया- राहुल की तुलना को बेमानी मानते हुए राहुल को खुली छूट देने की बात करते हैं.
आखिर में राहुल के बयान को आगे बढ़ाते हुए फूलपुर-गोरखपुर का हवाला देते हुए दिग्विजय कहते हैं कि, रणनीति सही हो तो मोदी को बनारस में और बीजेपी को देश में हराया जा सकता है.
कुल मिलाकर सियासत की आखिरी सीरीज में दिग्विजय नहीं चल पाए. इसलिए नए होमवर्क और अपनी सियासत के कील कांटे दोबारा दुरस्त करके वो सियासत की नई सीरीज में उतर रहे हैं. इस बार वो फ्लॉप होते हैं या मैन ऑफ द सीरीज बनते हैं इसके नजर रखनी होगी दिग्विजय की आगे की राजनीति पर.
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