भोपाल/इंदौर। ऊपर फोटो में 7 साल का तेजा है, जो इंदौर में अपने पिता के साथ रहता है। दिमागी पोलियो से ग्रस्त है, लेकिन पिता के लिए तो जैसे रुपए कमाने की मशीन। पिता उसे भीख मांगने वाले गिरोह को कुछ समय के लिए किराए पर दे देता है। गिरोह जिस मजहब का रहता है, उसके हिसाब से पिता ही तेजा के लिए टोपी लाकर देता है और टीका भी लगाता है। गिरोह से जो पैसा मिलता है, उसे पिता दारू में उड़ा देता है। पिता तो उसका इलाज नहीं करा रहा, लेकिन आम सड़कों पर भीख मांग रहे इस मासूम पर सरकार की नजर भी नहीं पड़ती। संवेदनशील सरकार के पास ऐसी कोई योजना नहीं है जो इस तरह आम सड़कों पर भटक रहे बीमार भिखारियों को इलाज उपलब्ध कराती हो।
भोपाल/इंदौर में भिखारी भी आजाद नहीं
असंवेदनशीलता और इंसान का इस तरह से दरिंदगी भरा उपयोग, यह कोई एक अकेला मामला नहीं है। भोपाल एवं इंदौर में भिखारी भी स्वतंत्र नहीं है। वो जहां चाहे भीख नहीं मांग सकते। कुछ नेता किस्म के लोगों ने सारे शहर को हिस्सों में बांट लिया है। भिखारी को इनसे परमिशन लेनी होती है। जिस स्थान पर यह भीख मांगते हैं उसका फिक्स किराया होता है या फिर मिली हुई भीख में से कमीशन लिया जाता है। कुछ भिखारी माफिया अब पैसे वाले हो गए हैं इसलिए वो भिखारियों की संविदा नियुक्ति कर लेते हैं। भिखारी को सारे दिन भीख मांगनी होती है, बदले में उसे एक फिक्स पैस मिल जाता है।
सत्ता से चिपका रहता है भिखारी माफिया
तमाम अवैध धंधों की तरह भिखरी माफिया भी सत्ता से चिपका रहता है। जिस पार्टी की सत्ता हो, उसके बड़े नेताओं की सेवा में जुट जाता है। सरपरस्ती हासिल होने के बाद वो खुलेआम भीख मंगवाता है। चैराहों पर खड़ी पुलिस को सबकुछ पता होता है परंतु कमीशन का एक हिस्सा उन्हे भी मिलता है। चैंकाने वाली बात तो यह है कि हर साल दर्जनों एनजीओ भिखारी माफिया के खिलाफ आवाज उठाते हैं परंतु कुछ समय बाद वो भी चुप हो जाते हैं।
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