अासुमल हरपलानी से आध्यात्मिक गुरु आसाराम और फिर अरबों रुपए की संपत्ति के मालिक बनने की कहानी बड़ी रोचक है।
- 1972 में अहमदाबाद के मोटेरा में बनाया पहला आश्रम- नैनीताल के लीलाशाह को बनाया था गुरु
जोधपुर.साढ़े चार साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आसाराम और और उसके 2 सहयोगियों को अदालत ने दोषी करार दे दिया। अासुमल हरपलानी से आध्यात्मिक गुरु आसाराम और फिर अरबों रुपए की संपत्ति के मालिक बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। आसाराम ने एक जमाने में चाय बेची, उससे काम नहीं चला तो अवैध शराब का धंधा भी किया। फिर हत्या के एक मामले में जेल जाना पड़ा। जेल से छूटा तो अजमेर आकर तांगा चलाना शुरू कर दिया। आध्यात्मिक गुरु लीलाशाह की शरण में जाने के बाद उसकी किस्मत पलटी और वह आसाराम के नाम से मशहूर हो गया। लाखों लोग उसके भक्त बन गए। अनुमान है कि आसाराम के पास 10 हजार करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है।
पाकिस्तान में हुआ जन्म
- आसाराम का जन्म 1941 को पाकिस्तान के नवाबशाह जिले के बरानी गांव में हुआ। पिता थिउमल और मां मेहंगी ने अपने इस बेटे का नाम अासुमल रखा। बंटवारे के दौरान उनका मकान उजड़ गया और परिवार अहमदाबाद के पास मणिनगर आकर बस गया। यहां आने के कुछ समय बाद ही पिता की मौत हो गई। परिवार की जिम्मेदारी अासुमल पर आ गई।
- इस घटना के कुछ दिन बाद अासुमल परिवार समेत मणिनगर से वीजापुर आकर बस गया। अासुमल ने यहां चाय की दुकान शुरू की। चाय बेचने से काम नहीं चला तो उसने अवैध शराब का धंधा शुरू कर दिया।
- आसाराम पर शराब के नशे में एक युवक की हत्या का आरोप लगा। थोड़े समय जेल भी रहना पड़ा, लेकिन बाद में वह बरी हो गया।
- साठ के दशक में वो परिवार सहित अजमेर से अहमदाबाद चला गया। यहां उसने फिर से शराब का कारोबार शुरू कर दिया। उसने कई लोगों से पैसा उधार लिया। जब कर्ज नहीं चुका पाया तो फिर से भागकर परिवार समेत अजमेर आ गया। यहां उसने तांगा चलाना शुरू कर दिया। यहीं पर उसने लक्ष्मी देवी नाम की महिला से शादी कर ली। उसके दो बच्चे नारायण साईं और पुत्री भारती देवी का जन्म हुआ। बच्चों के जन्म के बाद अासुमल यहां से गायब हो गया।
नैनीताल के लीलाशाह को बनाया गुरु
- अासुमल नैनीताल स्थित आध्यात्मिक गुरु लीलाशाह के आश्रम पहुंच गया। उसने लीलाशाह को अपना गुरु बनाया।
- अासुमल की सेवा से खुश हो लीलाशाह ने उसका नामकरण आसाराम कर दिया। इसके बाद आसाराम का जीवन पूरी तरह से बदल गया।
- आसाराम ने घूम-घूम कर आध्यात्मिक प्रवचन देना शुरू कर दिया। साथ ही वह खुद गुरु बन लोगों को गुरु दीक्षा भी देने लगा। सत्संग में शामिल होने वालों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती गई और आसाराम का वैभव भी बढ़ना शुरू हो गया।
- आसाराम ने 1972 में अहमदाबाद के पास मोटेरा में साबरमती नदी के किनारे अपना पहला आश्रम बनाया। आसाराम ने सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्र के गरीब और पिछड़ों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। इसके बाद उसका प्रवचन सुनने गुजरात के बाहर से भी लोग आने लगे।
- प्रवचन और देसी दवा का गठजोड़ ऐसा चला कि देखते ही देखते चन्द सालों में आसाराम ने अपना विशाल साम्राज्य खड़ा कर लिया। देशभर में उसने चार सौ आश्रम खड़े कर लिए। इन आश्रमों की जमीन ही अरबों रुपए की है। अपने करोड़ों साधकों के बीच आसाराम अपने कई उत्पाद बेचने लगा और उसकी मोटी कमाई का जरिया शुरू हो गया।
ऐसे हासिल की संपत्ति
- आसाराम की मिल्कियत वाली काफी प्रॉपर्टी गैरकानूनी हैं। इन जमीनों को गलत दस्तावेज रखने वाले भक्तों को फुसलाकर और अतिक्रमण के जरिए हासिल किया गया। आसाराम के पास 400 ट्रस्ट हैं। उसके जरिए वह अपने पूरे साम्राज्य पर नियंत्रण रखता था।
- आसाराम की संस्थाओं द्वारा बेची जाने वाली पत्रिकाओं, प्रार्थना पुस्तकों, सीडी, साबुन, धूपबत्ती और तेल जैसे उत्पादों की बिक्री, श्रद्धालुओं के चंदे और आश्रम की हड़पी हुई जमीन पर खेती से भी आश्रम के खजाने में मोटी रकम आई।
- धन बटोरने का सबसे बड़ा जरिया अनुयायियों को प्रवचन देना था। इसके लिए करीब 50 सत्संग हुआ करते थे। दो या तीन दिनों के हरेक प्रवचन में उत्पादों की बिक्री से ही 1 करोड़ रुपए जुटा लिए जाते थे।
- सबसे ज्यादा धन उगलने वाले तीन या चार सालाना गुरुपूर्णिमा के कार्यक्रम हुआ करते थे। आसाराम के करीबी बताते हैं कि हर साल 10 से 20 भंडारे किए जाते थे। उनके लिए 150 करोड़ से लेकर 200 करोड़ तक चंदा लिया जाता था। इसकी तुलना में खाना बनाने और बांटने में खर्च की गई रकम नाममात्र की हुआ करती थी।
- 11000 योग वेदांत सेवा समितियों के जरिए चंदा इकट्ठा होता था। बेनामी जमीन-जायदाद के सौदों के तहत उसका करीब 2200 करोड़ रुपया ब्याज पर चल रहा है। 500 से अधिक लोगों को उसने ये पैसा दिया है।
- अमेरिकी कंपनी सोहम इंक और कोस्टास इंक में आसाराम ने करीब 156 करोड़ रुपए का निवेश किया है।
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