Monday 9 April 2018

खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं मंत्री पद के असली दावेदार



भोपाल । शुक्रवार 6 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी का 38वें स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्वीट 'कार्यकर्ता ही भाजपा की जान हैं, शान हैं, पार्टी की रीढ़ हैं। पर मध्यप्रदेश में पार्टी के हालात ठीक इसके विपरीत हैं। यहां सरकार बाबाओं को तो मंत्री दर्जे से नवाज रही है लेकिन मंत्री पद के असली दावेदार लंबे समय से उपेक्षित हैं। ऐसे विधायक अब खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
पिछले 15 सालों से पार्टी का झंडा उठा रहे कार्यकर्ता और संगठन के नेताओं के बीच खलबली मची हुई हैं। उपेक्षा का आलम ये है कि प्रदेश का मालवा-निमाड़ और विन्ध्य क्षेत्र का कैबिनेट में प्रतिनिधित्व न के बराबर है। इन क्षेत्रों में कार्यकर्ता से लेकर विधायक तक न सिर्फ खफा हैं बल्कि कह रहे हैं कि क्या उनकी भूमिका सिर्फ जिंदाबाद के नारे लगाने या भीड़ जुटाने तक सीमित है।
मालवा-निमाड़ खाली हाथ
शिवराज कैबिनेट में भौगोलिक संतुलन देखा जाए तो 70 से ज्यादा विधायकों वाले मालवा-निमाड़ क्षेत्र को कैबिनेट में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय द्वारा कैबिनेट से इस्तीफा देने के बाद से इंदौर जैसे बड़े शहर से कोई मंत्री नहीं है। जब कभी कैबिनेट विस्तार की बात चलती है तो रमेश मेंदोला, सुदर्शन गुप्ता, रंजना बघेल, यशपाल सिंह सिसौदिया और ओमप्रकाश सकलेचा के नाम मंत्रीपद के दावेदारों के रूप में चर्चा में आ जाते हैं लेकिन किसी न किसी बहाने से क्षेत्र उपेक्षित रह जाता है।
विन्ध्य की भारी उपेक्षा
भाजपा सरकार में विन्ध्य लंबे समय से उपेक्षित है। पूरे इलाके से सिर्फ राजेंद्र शुक्ल ही एकमात्र मंत्री हैं। शहडोल से सांसद बने ज्ञानसिंह ने मंत्री पद छोड़ा तो उसकी भरपाई भी नहीं हो पाई। हर्ष सिंह मंत्री तो हैं पर बिना विभाग के। लंबे समय से वे अस्वस्थ चल रहे हैं। वहीं मंत्री पद के दावेदारों में केदार शुक्ला, रामलाल रौतेल को मंत्री बनाए जाने की चर्चा कैबिनेट विस्तार के समय होती है लेकिन परिणाम शून्य रहता है।
महाकोशल में भी असंतुलन
महाकोशल को भी सरकार में प्रतिनिधित्व भाजपा विधायकों को संख्या की दृष्टि से कम है। कांग्रेस आए संजय पाठक को जब से मंत्री बनाया गया तब से यहां के विधायकों में असंतोष और बढ़ गया है। अंचल सोनकर, मोती कश्यप की कैबिनेट में दावेदारी सिर्फ चर्चाओं तक ही सीमित रही ।
मध्यभारत-ग्वालियर में एक जिले से तीन मंत्री
कैबिनेट में भौगोलिक संतुलन इस कदर गड़बड़ाया है कि प्रदेश के रायसेन जिले से एक नहीं तीन-तीन मंत्री हैं। रामपाल सिंह, डा गौरीशंकर शेजवार और सुरेंद्र पटवा एक जिले से मंत्री हैं। ग्वालियर जिले से भी माया सिंह, जयभान सिंह पवैया और नारायण सिंह कुशवाह तीन मंत्री हैं। दूसरी तरफ 24 जिले ऐसे हैं जहां का कैबिनेट में प्रतिनिधित्व ही नहीं है। भोपाल से उमाश्कर गुप्ता और विश्वास सारंग दो मंत्री हैं।
इनका कहना है
मंत्री नहीं बनने पर मायूसी की कोई बात ही नहीं है। मैंने अपनी दावेदारी जरूर पेश की थी, लेकिन संगठन ने मेरे जैसे कार्यकर्ता को बहुत सम्मान दिया है। 
- सुदर्शन गुप्ता, विधायक, इंदौर-1
हम तो 8-9 साल से इंतजार कर रहे हैं और अब फिर चुनावी साल आ गया है। जहां तक बाबाओं को मंत्री दर्जा देने का सवाल है, उससे कार्यकर्ताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता। 
- केदारनाथ शुक्ला, विधायक, सीधी
मंत्री पद की दावेदारी अपनी जगह है, लेकिन यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। जब नेता पर पूरा भरोसा हो तो उनके निर्णय पर सवाल नहीं उठाए जाते। हम टीम वर्क से काम कर रहे हैं।
- ओमप्रकाश सखलेचा, विधायक, जावद

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