Friday 4 May 2018

शिवराज के खिलाफ उतरे उद्योगपति कहा: वादा निभाओ नहीं तो आंदोलन


INDORE | MP | NEWS | चुनावी साल में मप्र की शिवराज सरकार की मुसीबतें लगातार बढ़ती जा रही है। किसान आंदोलन, संविदा कर्मचारी आंदोलन के बाद अब प्रदेश के उद्योगपतियों ने भी सराकर के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है। प्रदेश सरकार का सबसे अधिक विरोध मप्र की औद्योगिक राजधानी इंदौर में देखा जा रहा है। संधारण शुल्क और दोहरे करारोपण के विरोध में छोटे उद्योगपति खुलकर मैदान में आ गए है। शुक्रवार को इंदौर में रिगल तिराहे पर उद्योगपतियों ने दो घंटे तक धरना प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान उद्योगपतियों ने गांधी जी की प्रतीमा के चरणों में ज्ञापन रख शिवराज सरकार को सद़बुद्धि देने की प्रार्थना की।

शुक्रवार को मप्र में उद्योगपतियों के सबसे बड़े संगठन एसाेसिएशन ऑफ इंडस्ट्ररीज मप्र और संघ से जुड़ी औद्योगिक इकाइ लघु उद्योग भारती के बैनर तले सांवेर रोड़ औद्योगिक क्षेत्र, पोलोग्राउंड, लक्ष्मीबाई नगर, पालदा, राऊ आदि औद्योगिक क्षेत्रों के 200 से अधिक उद्योगपतियों ने प्रदेश सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया।

प्रदर्शन कर रहे उद्योगपतियों ने मप्र में लघु उद्योगों के विकास में सरकार की नीतियों को ही रोड़ा बताया। उद्योगपतियों ने कहा कि 'मेक इन एमपी' का दावा करने वाली शिवराज सरकार खुद उद्योगों का विकास बाधक कर रही है। यदि प्रदेश सरकार ने संधारण शुल्क में की गई बढ़ोतरी के साथ ही उद्योगों पर लगने वाले दोहरे कर को समाप्त नहीं किया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा।

2009 से पहले नहीं था, अब चार गुना बढ़ा दिया...
साल 2009 से पहले तक मप्र के वे औद्योगिक क्षेत्र जो जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र (डीआईसी) के तहत आते हैं उन क्षेत्रों में कोई संधारण शुल्क नहीं वसूला जाता था। साल 2009 में प्रदेश सरकार ने 2.5 रुपए प्रति वर्गमीटर की दर से इन क्षेत्रों के उद्योगपतियों से संधारण शुल्क वसूलना प्रारंभ किया। चूंकि 2.5 रुपए प्रति वर्गमीटर का शुल्क बहुत अधिक नहीं था इसलिए उद्योगपतियों ने इसका विरोध नहीं किया लेकिन अब सरकार ने इस शुल्क को चार गुना बढ़ाकर 10 रुपए प्रति वर्गमीटर कर दिया है। उद्योगपतियों द्वारा इसी का विरोध किया जा रहा है।

2010 में किया था समाप्त करने का वादा
मप्र के लघु उद्योगों को दोहरे कर का सामना भी करना पड़ रहा है। प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों में स्थित उद्योगों से जहां एक ओर उद्योग विभाग संघारण शुल्क, लीजरेंट वसूला जा रहा है वहीं नगर निगम द्वारा संपत्तिकर, संपत्ति अंतरण शुल्क, जलकर, सफाई शुल्क, स्वच्छता शुल्क, भवन नियंत्रण एवं अन्य शुल्क वसूले जा रहे है। शिवराज सरकार ने औद्योगिक संवर्धनी नीति-2010 में इस दोहरे कर को समाप्त करने का वादा किया था लेकिन इस आज तक समाप्त नहीं किया जा सका है।

हमसे पूछा ही नहीं और बढ़ा दिया शुल्क
एआईएमपी के अध्यक्ष आलोक दवे का कहना है कि प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश राज्य औद्योगिक भूमि एवं भवन प्रबंधन नियम 2015 में उल्लेखित संधारण शुल्क की दरें उद्योग संगठनों को विश्वास में लिए बिना बढ़ा दी। शुल्क बढ़ाने से पहले छोटे उद्योगपतियों की राय तक नहीं ली गई। वहीं अब उद्योगपतियों से बढ़ा हुआ शुल्क ब्याज और पेनल्टी के साथ वसूला जा रहा।

एकेवीएन में बड़े उद्योगपति लेकिन वहां शुल्क कम
एआईएमपी के पदाधिकारियों का कहना है कि औद्योगिक केन्द्र विकास निगम (एकेवीएन) के तहत आने वाले औद्योगिक क्षेत्र में संधारण शुल्क काफी कम है जबिक एकेवीएन के तहत बड़े उद्योगपति आते है। इसके साथ ही एकेवीएन अपने औद्योगिक क्षेत्र में सड़क, बिजली और पानी जैसी सुविधाएं प्रदान करती है जबकि डीआईसी के औद्योगिक क्षेत्रों में यह सुविधाएं छोटे उद्योगपतियों को उपलब्ध नहीं होती।

हुई थी विलय की बात...
लगभग चार साल पहले डीआईसी के तहत आने वाले सभी औद्योगिक क्षेत्रों का विलय एकेवीएन में करने की बात प्रदेश सरकार ने कही थी। इसके लिए योजना भी तैयार कर ली गई थी और औद्योगिक संगठनों की बैठक बुलाकर उन्हें इस बारे में अवगत भी कराया गया था। एआईएमपी का कहना है कि डीआईसी के औद्योगिक क्षेत्रों का विलय एकेवीएन में करने की बात प्रदेश सरकार ने कही थी लेकिन अब तक इस काम को अंजाम नहीं दिया गया है।

यह मांगे है उद्योग जगत की
- संधारण शुल्क को समाप्त किया जाए
- दोहरे करारोपण को भी समाप्त किया जाए
- लीजरेंट काे नवीनीकरण के समय दोगुना करना चाहिए लेकिन सरकार ने इसे 10 गुना करने का आदेश दिया है।
- पारिवारिक अंतरण में चाचा, भतिजे, भतिजी को भी शामिल किया जाना चाहिए।
- साल 2008 में उद्योग मित्र योजना बंद कर दी गई थी इसे पुन: प्रारंभ किया जाए। 
- औद्योेगिक भूमि की दरें कलेक्टर गाईडलाइन से तय किए जाने के बजाय पूर्व में प्रचलित जिले की श्रेणी के आधार पर तय की जानी चाहिए।
- पहले औद्योगिक इकाईयों को वेट की छूट दी जाती थी जो जीएसटी के लागू होने के बाद समाप्त हो गया है। इस संबंध में नई नीति बनाई जानी चाहिए।

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